



भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग में देशभक्ति और भारतीयता का चेहरा बनकर उभरे अभिनेता मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे। आज, 4 अप्रैल 2025, को उन्होंने मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में 87 वर्ष की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन से बॉलीवुड इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई है और देशभर के लाखों प्रशंसकों की आंखें नम हैं।
सिनेमा का ‘भारत’
मनोज कुमार को ‘भारत कुमार’ यूं ही नहीं कहा गया। 1960 और 70 के दशक में जब भारतीय सिनेमा में ग्लैमर, ड्रामा और रोमांस का बोलबाला था, तब मनोज कुमार ने देशभक्ति, सादगी और नैतिक मूल्यों को अपनी फिल्मों का केंद्र बनाया। उनकी फिल्मों में नायक सिर्फ परदे का हीरो नहीं, बल्कि एक ऐसा नागरिक होता था जो देश के लिए जीता और मरता था।
फिल्में जो बन गईं आदर्श
‘उपकार’ (1967), जिसमें उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ के नारे को परदे पर जीवंत किया, आज भी देशभक्ति फिल्मों की मिसाल मानी जाती है। इसके बाद ‘पूरब और पश्चिम’, ‘क्रांति’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्में आईं, जिनमें उन्होंने आम आदमी की तकलीफों, देश के सामाजिक मुद्दों और राष्ट्र प्रेम को केंद्र में रखा।
अभिनय से लेकर निर्देशन तक
मनोज कुमार न सिर्फ एक उत्कृष्ट अभिनेता थे, बल्कि एक कुशल निर्देशक और पटकथा लेखक भी रहे। उन्होंने अपनी फिल्मों के ज़रिए समाज को जागरूक करने का प्रयास किया और सिनेमा को मनोरंजन के साथ-साथ संदेशवाहक माध्यम बनाया।
निजी जीवन में भी आदर्श
मनोज कुमार की छवि परदे तक सीमित नहीं थी। वह निजी जीवन में भी उतने ही सरल, मर्यादित और सच्चे इंसान माने जाते थे। उन्होंने हमेशा अपने आदर्शों से समझौता करने से इनकार किया और ग्लैमर की दुनिया में रहते हुए भी अपने सिद्धांतों पर कायम रहे।
एक युग का अंत
मनोज कुमार का जाना सिर्फ एक अभिनेता का जाना नहीं है, बल्कि एक युग का अंत है। उन्होंने जो छवि और मानदंड स्थापित किए, वह आज भी युवा कलाकारों के लिए प्रेरणा हैं। उनके पात्रों में जो सच्चाई, संघर्ष और देशप्रेम था, वह भारतीय सिनेमा में अमर रहेगा।
श्रद्धांजलि:
मनोज कुमार को हमारी ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि। उन्होंने सिनेमा को सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि देशसेवा का माध्यम बनाया। ‘भारत कुमार’ अब भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी छवि हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगी।